Well, It was the friday night and the lights had gone. Now, Me and my flatmate Mayank deviced this method to enjoy ourselves. We started with some really wierd poems and then finalised on this. Now, this is the other fact that both of us were laughing our life out when we read it back. :)
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विगत स्मृतियाँ मस्तिष्क पटल पर कई प्रश्न छोड़ जाती हैं,
कोई कहता है स्वार्थ जिसे, कुछ कहते हैं आजादी है.
कहते थे वे हैं सखा घने, सुख-दुःख के भी वे साथी हैं,
अंहकार के साए में, अब नज़रें भी नहीं मिल पाती हैं.
मिलना-जुलना सब बंद हुआ, रिश्तों में घुटन ही बाकी है,
चंद लम्हों में सब बिखर गया, यह स्वार्थ बड़ा ही पापी है.
-"मधुसूदन एवं मयंक"
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विगत स्मृतियाँ मस्तिष्क पटल पर कई प्रश्न छोड़ जाती हैं,
कोई कहता है स्वार्थ जिसे, कुछ कहते हैं आजादी है.
कहते थे वे हैं सखा घने, सुख-दुःख के भी वे साथी हैं,
अंहकार के साए में, अब नज़रें भी नहीं मिल पाती हैं.
मिलना-जुलना सब बंद हुआ, रिश्तों में घुटन ही बाकी है,
चंद लम्हों में सब बिखर गया, यह स्वार्थ बड़ा ही पापी है.
-"मधुसूदन एवं मयंक"
2 comments:
this is really nice !!
keep trying, you can do better :)
~ Kanchan
Thanks.
Yes! It has got a lot of scope for improvement. :)
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